डिजिटल युग में मार्केटिंग की दुनिया लगातार बदल रही है। पहले जहां ब्रांड्स अपने उत्पादों का प्रचार केवल टीवी, रेडियो और अख़बारों के ज़रिए करते थे, वहीं अब सोशल मीडिया ने इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है। इस बदलाव का सबसे बड़ा हिस्सा है “इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग”, और जब इसे “एफिलिएट प्रोग्राम्स” के साथ जोड़ा गया, तो इसने ऑनलाइन बिजनेस के तरीके को पूरी तरह बदल दिया।
आइए जानते हैं कि इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग कैसे विकसित हुई, यह एफिलिएट मार्केटिंग से कैसे जुड़ी, और आज इसका व्यवसायों और उपभोक्ताओं पर क्या प्रभाव है।
एफिलिएट मार्केटिंग की शुरुआत
एफिलिएट मार्केटिंग की नींव 1990 के दशक में रखी गई थी। उस समय Amazon जैसी कंपनियों ने बाहरी वेबसाइट्स को अपने उत्पादों की बिक्री में शामिल करना शुरू किया। इसका मॉडल सरल था कोई भी व्यक्ति अपनी वेबसाइट या ब्लॉग पर किसी प्रोडक्ट का लिंक शेयर करे, और अगर उस लिंक से खरीदारी होती है, तो उसे कमीशन मिले।
यह प्रणाली प्रदर्शन आधारित थी, यानी “आप जितनी बिक्री लाएँगे, उतनी कमाई करेंगे।” शुरुआती दिनों में यह मार्केटिंग तकनीकी ब्लॉग्स और ई-कॉमर्स वेबसाइट्स तक सीमित थी।
सोशल मीडिया का आगमन और इन्फ्लुएंसर का उदय
2005 के बाद जब YouTube, Facebook, और Instagram जैसे प्लेटफॉर्म लोकप्रिय होने लगे, तो लोगों ने कंटेंट बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे कुछ लोगों की फॉलोइंग इतनी बढ़ गई कि उनके विचार, सिफारिशें और पसंद दूसरों के लिए प्रेरणा बन गईं। इन्हें ही “इन्फ्लुएंसर” कहा गया।
ब्रांड्स ने देखा कि लोग अब विज्ञापनों से ज़्यादा भरोसा उन लोगों पर करते हैं जिन्हें वे सोशल मीडिया पर फॉलो करते हैं। इस तरह, इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग की शुरुआत हुई यानी ऐसा मार्केटिंग तरीका जिसमें कोई व्यक्ति अपने दर्शकों को किसी उत्पाद या सेवा के बारे में सिफारिश करता है।
जब दोनों मॉडल मिले — एफिलिएट और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग
जैसे-जैसे डिजिटल मार्केटिंग का विस्तार हुआ, कंपनियों ने इन दोनों तरीकों को एक साथ जोड़ना शुरू किया। पहले ब्रांड्स इन्फ्लुएंसर्स को केवल फिक्स फीस देकर प्रमोशन करवाते थे, लेकिन अब उन्हें बिक्री से जुड़ा कमीशन देने लगे।
उदाहरण के लिए, अगर कोई फैशन इन्फ्लुएंसर किसी कपड़ों के ब्रांड का वीडियो बनाता है और उसके कैप्शन में एफिलिएट लिंक डालता है, तो उस लिंक से हुई हर बिक्री पर उसे कमीशन मिलता है। इससे ब्रांड को वास्तविक बिक्री मिलती है, और इन्फ्लुएंसर को उसकी लोकप्रियता का आर्थिक लाभ।
इस मॉडल के सफल होने की वजह
इस मॉडल की सफलता का मुख्य कारण “भरोसा” है। पारंपरिक विज्ञापनों में उपभोक्ता जानता है कि कंपनी खुद की तारीफ कर रही है, लेकिन जब कोई भरोसेमंद इन्फ्लुएंसर किसी प्रोडक्ट की सिफारिश करता है, तो दर्शक उसे सच्चे अनुभव की तरह देखते हैं।
साथ ही, एफिलिएट मार्केटिंग की ट्रैकिंग तकनीक ने इस मॉडल को पारदर्शी बना दिया। अब हर क्लिक, हर बिक्री और हर ट्रांजैक्शन का डेटा उपलब्ध है, जिससे ब्रांड्स और इन्फ्लुएंसर दोनों को स्पष्ट जानकारी रहती है।
भारत में इन्फ्लुएंसर एफिलिएट मार्केटिंग का प्रभाव
भारत में पिछले कुछ वर्षों में इस मॉडल की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ी है। Statista की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का इन्फ्लुएंसर मार्केट 2025 तक करीब 2,800 करोड़ रुपये का हो सकता है।
Amazon Associates, Flipkart Affiliate Program और Meesho Creator Program जैसे प्लेटफॉर्म्स ने हजारों इन्फ्लुएंसर्स को जोड़कर एफिलिएट कमाई का अवसर दिया है। YouTube Shorts, Instagram Reels और Moj जैसे प्लेटफॉर्म्स ने छोटे इन्फ्लुएंसर्स को भी इस उद्योग में प्रवेश करने का मौका दिया।
माइक्रो और नैनो इन्फ्लुएंसर्स की भूमिका
आज मार्केटिंग का फोकस केवल बड़े सेलेब्रिटीज़ तक सीमित नहीं है। “माइक्रो इन्फ्लुएंसर्स” (10,000 से 1 लाख फॉलोअर्स वाले) और “नैनो इन्फ्लुएंसर्स” (10,000 से कम फॉलोअर्स वाले) भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
इनका दर्शक समूह छोटा जरूर है, लेकिन बेहद जुड़ा हुआ और भरोसेमंद होता है। इस वजह से इनकी सिफारिशें अधिक असरदार साबित होती हैं। कंपनियाँ अब “एंगेजमेंट रेट” पर ज़्यादा ध्यान देने लगी हैं, न कि केवल “फॉलोअर काउंट” पर।
टेक्नोलॉजी ने बढ़ाई सटीकता
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा एनालिटिक्स के ज़रिए अब यह पता लगाना आसान हो गया है कि कौन सा इन्फ्लुएंसर किस ऑडियंस के लिए सबसे उपयुक्त है। कंपनियाँ यह विश्लेषण कर सकती हैं कि कौन सा कंटेंट अधिक बिक्री लाता है और कौन से प्लेटफॉर्म से सबसे अच्छा परिणाम मिलता है।
ब्लॉकचेन तकनीक भी इस क्षेत्र में धीरे-धीरे कदम रख रही है। इससे एफिलिएट ट्रैकिंग और भुगतान प्रक्रिया और पारदर्शी बन जाएगी। भविष्य में यह तकनीक धोखाधड़ी और गलत रिपोर्टिंग जैसी समस्याओं को खत्म कर सकती है।
इस क्षेत्र की चुनौतियाँ
हर तेजी से बढ़ते क्षेत्र की तरह, इस उद्योग के भी कुछ मुद्दे हैं:
- कई इन्फ्लुएंसर नकली फॉलोअर्स या फर्जी एंगेजमेंट का इस्तेमाल करते हैं।
- कुछ इन्फ्लुएंसर “प्रायोजित पोस्ट” का खुलासा नहीं करते, जिससे दर्शकों का भरोसा कमजोर होता है।
- एफिलिएट कमाई बिक्री पर निर्भर होने के कारण अस्थिर हो सकती है।
- बहुत सारे इन्फ्लुएंसर्स के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ने से नए क्रिएटर्स को पहचान बनाना मुश्किल हो गया है।
भविष्य की दिशा
आने वाले वर्षों में यह मॉडल और भी मजबूत होने की संभावना है। वीडियो आधारित शॉपिंग, लाइव कॉमर्स और वर्चुअल इन्फ्लुएंसर्स इस उद्योग को नई दिशा देंगे।
साथ ही, भारत में सरकार और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स “डिस्क्लोज़र गाइडलाइंस” लागू कर रहे हैं, ताकि उपभोक्ताओं को पता रहे कि कोई कंटेंट विज्ञापन है या वास्तविक समीक्षा। इससे पारदर्शिता और भरोसा दोनों बढ़ेंगे।
निष्कर्ष
एफिलिएट मार्केटिंग ने डिजिटल युग में ऑनलाइन बिक्री का रास्ता खोला था, लेकिन इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग ने उसमें मानवीय तत्व जोड़ दिया। दोनों का मेल अब केवल ब्रांड प्रमोशन का माध्यम नहीं रहा, बल्कि यह लाखों युवाओं के लिए करियर और कमाई का नया अवसर बन गया है।
भविष्य में यह मॉडल और भी उन्नत और पारदर्शी होगा, जहाँ टेक्नोलॉजी, क्रिएटिविटी और भरोसा मिलकर डिजिटल मार्केटिंग की दुनिया को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।

